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Article 103 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 13:43:36
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 103

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 103
अनुच्छेद 103 का सार अनुच्छेद 103 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत आता है। यह अनुच्छेद संसद के सदस्यों की अयोग्यता (Disqualification) से संबंधित प्रश्नों के निर्णय की प्रक्रिया को निर्धारित करता है। विशेष रूप से, यह राष्ट्रपति की भूमिका और अयोग्यता के मामलों में निर्वाचन आयोग की सलाह को रेखांकित करता है। इसका उद्देश्य अयोग्यता के मामलों में निष्पक्ष और संवैधानिक प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।
मुख्य प्रावधान: अनुच्छेद 103 में निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं
राष्ट्रपति द्वारा निर्णय: यदि संसद के किसी सदस्य की अयोग्यता का प्रश्न अनुच्छेद 102 (या अनुच्छेद 101 के तहत) के आधार पर उठता है, तो यह प्रश्न राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। राष्ट्रपति इस मामले में निर्णय लेगा। निर्वाचन आयोग की सलाह: अयोग्यता के प्रश्न पर निर्णय लेने से पहले, राष्ट्रपति को निर्वाचन आयोग की राय लेनी होगी। राष्ट्रपति को निर्वाचन आयोग की राय के अनुसार कार्य करना होगा।
लागू होने वाले आधार: यह अनुच्छेद उन मामलों पर लागू होता है, जहाँ अयोग्यता अनुच्छेद 102(1) के तहत हो, जैसे लाभ का पद, मानसिक अस्वस्थता, दिवालियापन, विदेशी नागरिकता, या अन्य कानून द्वारा अयोग्यता। दल-बदल (अनुच्छेद 102(2) और दसवीं अनुसूची) से संबंधित अयोग्यता के मामले इस अनुच्छेद के दायरे से बाहर हैं, क्योंकि वे सभापति/अध्यक्ष द्वारा तय किए जाते हैं।
उद्देश्य: संसद के सदस्यों की अयोग्यता के मामलों में एक निष्पक्ष और संवैधानिक प्रक्रिया स्थापित करना। राष्ट्रपति और निर्वाचन आयोग की भूमिका के माध्यम से पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना। संसद की सदस्यता की शुद्धता और लोकतांत्रिक जवाबदेही को बनाए रखना।
अनुच्छेद 103 की विशेषताएँ
राष्ट्रपति की भूमिका: राष्ट्रपति को अयोग्यता के मामलों में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार है, लेकिन यह निर्णय निर्वाचन आयोग की राय पर आधारित होता है।
निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता: निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, जो अयोग्यता के मामलों में निष्पक्ष सलाह देता है।
न्यायिक समीक्षा: राष्ट्रपति का निर्णय सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकता है, विशेष रूप से यदि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
दल-बदल से अपवाद: दल-बदल से संबंधित अयोग्यता के मामले अनुच्छेद 103 के बजाय दसवीं अनुसूची और सभापति/अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
लोकतांत्रिक जवाबदेही: यह सुनिश्चित करता है कि अयोग्यता के निर्णय संवैधानिक ढांचे के भीतर और निष्पक्ष रूप से लिए जाएँ।
अनुच्छेद 103 का महत्व
निष्पक्ष प्रक्रिया: राष्ट्रपति और निर्वाचन आयोग की भागीदारी अयोग्यता के मामलों में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करती है।
संसद की शुद्धता: यह सुनिश्चित करता है कि केवल योग्य व्यक्ति ही संसद में प्रतिनिधित्व करें।
संवैधानिक संतुलन: यह कार्यपालिका (राष्ट्रपति), स्वतंत्र निकाय (निर्वाचन आयोग), और विधायिका (संसद) के बीच संतुलन बनाए रखता है।
लोकतंत्र की रक्षा: यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करता है और संसद की विश्वसनीयता को बनाए रखता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
जया बच्चन बनाम भारत सरकार (2006)
मामला: इस मामले में समाजवाद पार्टी की सांसद जया बच्चन को उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष के रूप में लाभ का पद धारण करने के लिए अयोग्य घोषित किया गया। अयोग्यता का प्रश्न अनुच्छेद 102(1)(a) और अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति के समक्ष उठाया गया।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय, जो निर्वाचन आयोग की राय पर आधारित था, वैध था। कोर्ट ने लाभ का पद की परिभाषा को स्पष्ट किया और जया बच्चन की अयोग्यता को बरकरार रखा, क्योंकि यह पद संसद (लाभ का पद अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1959 के तहत छूट प्राप्त नहीं था।
महत्व: इसने अनुच्छेद 103 को अयोग्यता के मामलों में राष्ट्रपति और निर्वाचन आयोग की भूमिका के लिए महत्वपूर्ण माना।
सोहन लाल बनाम भारत सरकार (1957)
मामला: इस मामले में एक सांसद को लाभ का पद धारण करने के लिए अयोग्य घोषित किया गया। अयोग्यता का प्रश्न अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय, जो निर्वाचन आयोग की राय पर आधारित था, संवैधानिक रूप से वैध था। कोर्ट ने लाभ का पद की व्यापक व्याख्या की, जिसमें वित्तीय लाभ के साथ-साथ शक्ति और प्रभाव की संभावना शामिल थी।
महत्व: इसने अनुच्छेद 103 को अयोग्यता की प्रक्रिया में निष्पक्षता और संवैधानिकता सुनिश्चित करने के लिए प्रासंगिक माना।
इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया बनाम सुब्रह्मण्यम स्वामी (1996)
कहा कि अनुच्छेद 103 के तहत निर्वाचन आयोग की सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी है। कोर्ट ने राष्ट्रपति के निर्णय को वैध ठहराया और लाभ का पद की परिभाषा पर स्पष्टता प्रदान की।महत्व: इसने अनुच्छेद 103 को अयोग्यता के मामलों में निर्वाचन आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका के लिए रेखांकित किया।
कुलदीप नय्यर बनाम भारत सरकार (2006)
मामला: इस मामले में राज्यसभा की सदस्यता और अयोग्यता से संबंधित कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई, जिसमें अनुच्छेद 103 की प्रक्रिया शामिल थी।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 103 अयोग्यता के मामलों में एक संवैधानिक प्रक्रिया
प्रदान करता है, जो राष्ट्रपति और निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता पर आधारित है। कोर्ट ने प्रक्रिया को वैध ठहराया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 103 को संवैधानिक प्रक्रिया और निष्पक्षता के लिए महत्वपूर्ण माना।
नवजोत सिंह सिद्धू बनाम पंजाब सरकार (2006)
मामला: इस मामले में सांसद नवजोत सिंह सिद्धू को लाभ का पद (पंजाब सरकार के तहत एक सलाहकारी भूमिका) धारण करने के लिए अयोग्य घोषित करने का प्रश्न अनुच्छेद 103 के तहत उठाया गया।
निर्णय: सिद्धू ने अयोग्यता से बचने के लिए स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दिया। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय निर्वाचन आयोग की सलाह पर आधारित होना चाहिए। कोर्ट ने लाभ का पद की परिभाषा को और स्पष्ट किया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 103 को अयोग्यता की प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए प्रासंगिक माना।
अनुच्छेद 103 की सीमाएँ और आलोचनाएँ
सीमित दायरा: अनुच्छेद 103 केवल अनुच्छेद 102(1) के तहत अयोग्यता के मामलों तक सीमित है, जबकि दल-बदल से संबंधित मामले सभापति/अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में हैं, जो पक्षपात के आरोपों का सामना कर सकते हैं।
प्रक्रियात्मक विलंब: राष्ट्रपति और निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया में समय लग सकता है, जिसके कारण अयोग्यता के मामलों में देरी हो सकती है।
न्यायिक समीक्षा की सीमा: अनुच्छेद 122 और संसद की स्वायत्तता के कारण राष्ट्रपति के निर्णय की सीमित समीक्षा कुछ अनियमितताओं को अनदेखा कर सकती है।
लाभ का पद की अस्पष्टता: लाभ का पद की परिभाषा कई बार अस्पष्ट होती है, जिसके कारण विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
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