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Article 224 A of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:47:55
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 224A

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 224A
अनुच्छेद 224A भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय में सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की व्यवस्था(Appointment of retired Judges at sittings of High Courts) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को अस्थायी रूप से सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देता है।
"इस संविधान में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, उस राज्य के राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से, किसी भी समय, ऐसे व्यक्ति को, जो उस उच्च न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो, उस उच्च न्यायालय के सत्रों में सत्र न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिए अनुरोध कर सकता है, और इस प्रकार अनुरोध किया गया व्यक्ति, यदि वह सहमत हो, तो वह उस अवधि के लिए, जिसके लिए वह इस प्रकार कार्य करता है, इस संविधान के अधीन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान सभी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग करेगा।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 224A उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को अस्थायी रूप से सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की शक्ति देता है। यह नियुक्ति राज्यपाल के अनुमोदन और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश(CJI) के परामर्श से होती है। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की दक्षता को बढ़ाना, लंबित मामलों को कम करना, और संघीय ढांचे में उच्च न्यायालयों के कार्यभार को प्रबंधित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान 42वें संशोधन(1976) के माध्यम से जोड़ा गया, ताकि लंबित मामलों के बोझ को कम करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का उपयोग किया जा सके। यह भारतीय संविधान की एक विशिष्ट विशेषता है, जो कार्यभार प्रबंधन की आवश्यकता को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान में यह प्रावधान लंबित मामलों की संख्या को देखते हुए बनाया गया, जो उच्च न्यायालयों में न्यायिक कार्य को गति देने के लिए है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान अनुभवी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का उपयोग करके न्यायिक प्रक्रिया को तेज करता है।
अनुच्छेद 224A के प्रमुख तत्व
सत्र न्यायाधीश की नियुक्ति: उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश(उसी या किसी अन्य उच्च न्यायालय के) को सत्र न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिए अनुरोध कर सकता है। यह अनुरोध राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन और CJI के परामर्श के साथ होता है। उदाहरण: 2025 में, एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को दिल्ली उच्च न्यायालय में सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
शक्तियाँ और कर्तव्य: सत्र न्यायाधीश के पास उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश की सभी शक्तियाँ और कर्तव्य होंगे, जब तक वह कार्य करता है। उदाहरण: सत्र न्यायाधीश ने 2025 में लंबित मामलों की सुनवाई की।
स्वैच्छिक सहमति: सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सहमति देनी होगी; यह नियुक्ति अनिवार्य नहीं है। उदाहरण: एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने अनुरोध स्वीकार किया और कार्य किया।
महत्व: न्यायिक दक्षता: लंबित मामलों को कम करने में सहायता। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: CJI और मुख्य न्यायाधीश का परामर्श। लोकतांत्रिक शासन: त्वरित न्याय तक पहुँच। संघीय ढांचा: राज्यों में प्रभावी न्याय प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: सत्र न्यायाधीश: सेवानिवृत्त न्यायाधीश। अनुमोदन: राज्यपाल और CJI। न्यायपालिका: दक्षता और स्वायत्तता। संविधान: कार्यभार प्रबंधन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1976 के बाद: 42वें संशोधन के बाद इस प्रावधान का उपयोग शुरू। 2000 के दशक: लंबित मामलों के लिए सत्र न्यायाधीश नियुक्त। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में नियुक्तियों और सुनवाई का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: सीमित उपयोग: इस प्रावधान का कम उपयोग। सहमति की समस्या: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अनिच्छा।न्यायिक समीक्षा: नियुक्ति की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती(1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ(1981): न्यायाधीशों की नियुक्ति पर चर्चा।
अनुच्छेद 224: अतिरिक्त और कार्यवाहक न्यायाधीश। अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 128: सर्वोच्च न्यायालय में सेवानिवृत्त न्यायाधीश।
Conclusion
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