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Article 237 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 12:45:03
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 237

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 237
अनुच्छेद 237 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय VI(अधीनस्थ न्यायालय) में आता है। यह कुछ व्यक्तियों पर इस अध्याय के उपबंधों का लागू होना(Application of the provisions of this Chapter to certain class or classes of magistrates) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल को कुछ मजिस्ट्रेटों या व्यक्तियों पर अधीनस्थ न्यायालयों से संबंधित प्रावधानों को लागू करने की शक्ति देता है।
"राज्यपाल, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकता है कि इस अध्याय के उपबंध, या उनमें से कोई भी, कुछ संशोधनों और अपवादों के साथ, यदि कोई हों, जैसा कि उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट हो, किसी राज्य में उन व्यक्तियों पर लागू होंगे, जो मजिस्ट्रेट के कर्तव्यों का पालन करते हैं या उस राज्य में कुछ अन्य व्यक्तियों पर लागू होंगे, और ऐसी अधिसूचना के प्रभावी होने पर यह अध्याय तदनुसार लागू होगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 237 राज्यपाल को यह शक्ति देता है कि वह सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से अधीनस्थ न्यायालयों से संबंधित प्रावधानों(अनुच्छेद 233-236) को कुछ मजिस्ट्रेटों या अन्य व्यक्तियों पर लागू कर सके। यह प्रावधान लचीलापन प्रदान करता है ताकि कुछ विशिष्ट व्यक्तियों या मजिस्ट्रेटों को अधीनस्थ न्यायपालिका के नियमों और नियंत्रण के दायरे में लाया जा सके। इसका लक्ष्य न्यायिक प्रशासन में एकरूपता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और संघीय ढांचे में अधीनस्थ न्यायालयों की दक्षता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित नहीं है, बल्कि यह स्वतंत्र भारत की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ मजिस्ट्रेट या अन्य व्यक्ति न्यायिक कार्य करते थे। यह प्रावधान क्षेत्रीय और प्रशासकीय विविधताओं को संबोधित करता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान उन व्यक्तियों को अधीनस्थ न्यायपालिका के ढांचे में शामिल करने के लिए बनाया गया, जो औपचारिक रूप से न्यायिक सेवा का हिस्सा नहीं थे।
प्रासंगिकता: यह प्रावधान विशेष परिस्थितियों में लचीलापन प्रदान करता है, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत मजिस्ट्रेटों के लिए।
अनुच्छेद 237 के प्रमुख तत्व
राज्यपाल की शक्ति: राज्यपाल सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से निदेश दे सकता है कि इस अध्याय के उपबंध(अनुच्छेद 233-236) कुछ मजिस्ट्रेटों या अन्य व्यक्तियों पर लागू हों। यह लागू करना संशोधनों और अपवादों के साथ हो सकता है, जैसा कि अधिसूचना में विनिर्दिष्ट हो। उदाहरण: 2025 में, एक राज्यपाल ने ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत विशेष मजिस्ट्रेटों पर अनुच्छेद 235 के नियंत्रण को लागू करने की अधिसूचना जारी की।
लचीलापन: यह प्रावधान राज्यपाल को विशिष्ट परिस्थितियों में अधीनस्थ न्यायपालिका के नियमों को लागू करने की अनुमति देता है। यह उन व्यक्तियों पर लागू हो सकता है जो औपचारिक रूप से न्यायिक सेवा का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन न्यायिक कार्य करते हैं। उदाहरण: कुछ केंद्रशासित प्रदेशों में कार्यरत मजिस्ट्रेटों पर यह प्रावधान लागू किया गया।
महत्व: न्यायिक एकरूपता: मजिस्ट्रेटों और अन्य व्यक्तियों को अधीनस्थ न्यायपालिका के ढांचे में लाना। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: उच्च न्यायालय के नियंत्रण का विस्तार। लोकतांत्रिक शासन: सभी न्यायिक कार्यों में जवाबदेही। संघीय ढांचा: राज्यों में लचीला न्याय प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: राज्यपाल: अधिसूचना द्वारा शक्ति। उपबंध: अनुच्छेद 233-236 का विस्तार। लचीलापन: संशोधन और अपवाद। न्यायपालिका: एकरूपता और दक्षता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: कुछ राज्यों ने विशेष मजिस्ट्रेटों पर यह प्रावधान लागू किया। 1990 के दशक: ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों पर नियंत्रण। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में अधिसूचनाओं और नियंत्रण का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: कार्यकारी हस्तक्षेप: राज्यपाल की अधिसूचना पर सवाल। न्यायिक स्वायत्तता: उच्च न्यायालय के नियंत्रण के साथ संतुलन।न्यायिक समीक्षा: अधिसूचनाओं की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 233: जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 234: अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 235: अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण।
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