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Article 243ZR of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 15:42:30
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243ZR

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243ZR
अनुच्छेद 243ZR भारतीय संविधान के भाग IX-B(सहकारी समितियाँ) में आता है। यह वर्तमान विधियों और सहकारी समितियों का बने रहना(Continuance of existing laws and cooperative societies) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि 97वें संशोधन(2011) के लागू होने के बाद भी मौजूदा विधियाँ और सहकारी समितियाँ कुछ शर्तों के साथ बनी रहें। यह अनुच्छेद 97वें संशोधन(2011) के द्वारा जोड़ा गया, जिसने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
"इस संविधान के प्रारंभ के समय विद्यमान कोई विधि, जो इस भाग के उपबंधों के असंगत नहीं है, इस संशोधन के लागू होने की तारीख से एक वर्ष तक या जब तक इसे संशोधित या निरसन नहीं किया जाता, तब तक प्रभावी रहेगी। इसी प्रकार, इस संशोधन के लागू होने की तारीख को विद्यमान सहकारी समितियाँ तब तक बनी रहेंगी, जब तक उनकी अवधि समाप्त न हो या उन्हें इस संविधान के उपबंधों के अनुसार भंग न किया जाए।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 243ZR 97वें संशोधन के लागू होने के बाद मौजूदा विधियों और सहकारी समितियों की निरंतरता सुनिश्चित करता है, बशर्ते वे भाग IX-B के उपबंधों के साथ असंगत न हों। यह एक संक्रमणकालीन व्यवस्था प्रदान करता है ताकि सहकारी शासन में कोई व्यवधान न हो। इसका लक्ष्य सहकारी समितियों में लोकतांत्रिक प्रबंधन, पारदर्शिता, और संघीय ढांचे में स्थिरता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान 97वें संशोधन(2011) द्वारा जोड़ा गया, जो अनुच्छेद 243ZF(नगरपालिकाओं) और अनुच्छेद 243N(पंचायतों) से प्रेरित है। यह संशोधन के लागू होने के बाद मौजूदा विधियों और समितियों के लिए सुगम परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया। भारतीय संदर्भ: 2011 से पहले, विभिन्न राज्यों में सहकारी समितियों की विधियाँ और संरचनाएँ असमान थीं। इस संशोधन ने एकरूपता लाने के लिए एक वर्ष का समय दिया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान सहकारी शासन में सुचारु परिवर्तन और स्थिरता सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 243ZR के प्रमुख तत्व
मौजूदा विधियों की निरंतरता: 97वें संशोधन के लागू होने के समय विद्यमान कोई भी विधि, जो भाग IX-B के उपबंधों के साथ असंगत नहीं है, एक वर्ष तक या जब तक संशोधित या निरसन नहीं हो, प्रभावी रहेगी। यह राज्यों को अपनी विधियों को संवैधानिक उपबंधों के अनुरूप बनाने का समय देता है। उदाहरण: 2012 में, महाराष्ट्र की सहकारी समिति विधियाँ एक वर्ष तक प्रभावी रहीं।
मौजूदा सहकारी समितियों की निरंतरता: संशोधन के लागू होने की तारीख को विद्यमान सहकारी समितियाँ अपनी अवधि समाप्त होने तक या संवैधानिक उपबंधों के तहत भंग होने तक बनी रहेंगी। यह सहकारी शासन में व्यवधान को रोकता है। उदाहरण: 2012 में, एक सहकारी बैंक अपनी अवधि तक कार्यरत रहा।
महत्व: सुचारु परिवर्तन: मौजूदा विधियों और समितियों की निरंतरता। स्थिरता: सहकारी शासन में व्यवधान रोकना। लोकतांत्रिक प्रबंधन: संवैधानिक उपबंधों के साथ सामंजस्य। संघीय ढांचा: केंद्र, राज्य, और सहकारी समितियों में समन्वय।
प्रमुख विशेषताएँ: मौजूदा विधियाँ: एक वर्ष तक प्रभावी। सहकारी समितियाँ: अवधि तक निरंतरता। संशोधन/निरसन: राज्य की जिम्मेदारी। स्थिरता: सहकारी शासन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 2012: राज्यों ने अपनी सहकारी समिति विधियों को संशोधित किया। 2010 के दशक: मौजूदा सहकारी समितियाँ अपनी अवधि तक कार्यरत रहीं। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में, सहकारी समितियों की प्रक्रियाएँ डिजिटल रूप से प्रलेखित।
चुनौतियाँ और विवाद: 97वां संशोधन पर विवाद: 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने भाग IX-B के कुछ हिस्सों को असंवैधानिक घोषित किया, क्योंकि सहकारी समितियाँ राज्य सूची(सातवीं अनुसूची, प्रविष्टि 32) का विषय हैं। अनुच्छेद 243ZR की वैधता प्रभावित हुई, लेकिन मौजूदा विधियों और समितियों की निरंतरता पर प्रभाव सीमित। संशोधन में देरी: कुछ राज्यों में विधियों को समय पर संशोधित नहीं किया गया। न्यायिक समीक्षा: मौजूदा विधियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 243ZF: नगरपालिकाओं की मौजूदा विधियाँ। अनुच्छेद 243N: पंचायतों की मौजूदा विधियाँ। अनुच्छेद 243ZI: सहकारी समितियों का निगमन।
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