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Article 252 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 10:36:13
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 252

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 252
अनुच्छेद 252 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंध) में आता है। यह दो या अधिक राज्यों के अनुरोध पर संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधि बनाने की शक्ति(Power of Parliament to legislate for two or more States by consent and adoption of such legislation by any other State) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को उन विषयों पर विधि बनाने का अधिकार देता है, जो सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में हैं, बशर्ते दो या अधिक राज्यों के विधानमंडल इसके लिए सहमति दें। यह अन्य राज्यों को ऐसी विधि को अपनाने की अनुमति भी देता है।
"(1) यदि दो या अधिक राज्यों के विधानमंडलों ने यह प्रस्ताव पारित किया है कि सातवीं अनुसूची की द्वितीय सूची(राज्य सूची) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के संबंध में संसद द्वारा विधि बनाना समीचीन होगा, तो संसद को उन राज्यों के लिए उस विषय पर विधि बनाने का अधिकार होगा, और ऐसी विधि उन राज्यों पर लागू होगी।
(2) कोई भी अन्य राज्य अपने विधानमंडल के प्रस्ताव द्वारा ऐसी विधि को अपने लिए लागू कर सकता है।
(3) इस अनुच्छेद के तहत बनाई गई विधि को केवल संसद द्वारा संशोधित या निरसन किया जा सकता है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 252 संसद को राज्य सूची के विषयों(जैसे, कृषि, स्थानीय शासन) पर विधि बनाने की शक्ति देता है, यदि दो या अधिक राज्यों के विधानमंडल इसके लिए सहमति दें। यह अन्य राज्यों को ऐसी विधि को अपनाने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य क्षेत्रीय समन्वय, नीतिगत एकरूपता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य सहयोग को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 252 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें प्रांतों को केंद्र के साथ सहयोग की अनुमति थी। भारतीय संदर्भ: कुछ राज्य सूची के विषयों(जैसे, शिक्षा, कृषि) पर एकरूपता की आवश्यकता थी, खासकर जब कई राज्य मिलकर एक समान नीति चाहते थे। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राज्यों के बीच सहयोग और राष्ट्रीय स्तर पर नीतिगत एकरूपता को बढ़ावा देता है।
अनुच्छेद 252 के प्रमुख तत्व
खंड(1): राज्यों की सहमति पर संसद की शक्ति: यदि दो या अधिक राज्यों के विधानमंडल प्रस्ताव पारित करते हैं कि राज्य सूची के किसी विषय पर संसद विधि बनाए, तो संसद को उन राज्यों के लिए उस विषय पर विधि बनाने का अधिकार होगा। यह विधि केवल उन राज्यों पर लागू होगी, जिन्होंने सहमति दी है। उदाहरण: 2025 में, महाराष्ट्र और गुजरात ने जल प्रबंधन(राज्य सूची, प्रविष्टि 17) पर एकरूप नीति के लिए संसद को विधि बनाने की सहमति दी।
खंड(2): अन्य राज्यों द्वारा अपनाने की शक्ति: कोई अन्य राज्य अपने विधानमंडल के प्रस्ताव द्वारा ऐसी विधि को अपने लिए लागू कर सकता है। यह राज्यों को स्वेच्छा से नीतिगत एकरूपता अपनाने की अनुमति देता है। उदाहरण: 2025 में, राजस्थान ने महाराष्ट्र और गुजरात की जल प्रबंधन विधि को अपनाया।
खंड(3): संशोधन और निरसन: इस अनुच्छेद के तहत बनाई गई विधि को केवल संसद द्वारा संशोधित या निरसन किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि राज्यों को इस विधि में बदलाव का अधिकार नहीं है। उदाहरण: 2025 में, जल प्रबंधन विधि में संशोधन केवल संसद द्वारा किया गया।
महत्व: क्षेत्रीय समन्वय: राज्यों के बीच नीतिगत एकरूपता। संघीय सहयोग: केंद्र और राज्यों के बीच सहमति-आधारित शक्ति। लचीलापन: राज्यों को स्वेच्छा से शामिल होने की अनुमति। केंद्र की प्रभुता: विधि का संशोधन और निरसन केवल संसद द्वारा।
प्रमुख विशेषताएँ: राज्यों की सहमति: दो या अधिक राज्यों का प्रस्ताव। राज्य सूची: संसद की अस्थायी शक्ति। अन्य राज्यों का अधिकार: विधि अपनाने की स्वतंत्रता। संसद की प्रभुता: संशोधन और निरसन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1960 के दशक: शहरी भूमि सुधार पर कुछ राज्यों ने संसद को विधि बनाने की सहमति दी। 2010 के दशक: शिक्षा नीति(मूल रूप से राज्य सूची) पर एकरूपता के लिए संसद की विधियाँ। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में जलवायु परिवर्तन और डिजिटल स्वास्थ्य नीतियों पर संसद की विधियाँ।
चुनौतियाँ और विवाद: राज्य स्वायत्तता: राज्यों द्वारा संसद की शक्ति पर सवाल। सहमति की प्रक्रिया: प्रस्तावों की स्वैच्छिकता पर बहस। न्यायिक समीक्षा: विधियों की वैधता और सहमति की प्रक्रिया पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 246: विधायी शक्तियों का बंटवारा। अनुच्छेद 249: राष्ट्रीय हित में संसद की शक्ति। अनुच्छेद 250: आपातकाल में संसद की शक्ति। सातवीं अनुसूची: तीन सूचियाँ।
Conclusion
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