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Article 253 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 10:37:28
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 253

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 253
अनुच्छेद 253 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंध) में आता है। यह अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने के लिए संसद की विधायी शक्ति(Legislation for giving effect to international agreements) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को अंतरराष्ट्रीय समझौतों, संधियों, या सम्मेलनों को लागू करने के लिए विधि बनाने का अधिकार देता है, भले ही विषय सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में हो। यह केंद्र की प्रभुता और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने की क्षमता को सुदृढ़ करता है।
"अनुच्छेद 246 में किसी बात के होते हुए भी, संसद को भारत द्वारा या उसके अधीन किए गए किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते, संधि, या सम्मेलन को प्रभावी करने के लिए भारत के पूरे क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने का अधिकार होगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 253 संसद को अंतरराष्ट्रीय समझौतों, संधियों, या सम्मेलनों को लागू करने के लिए विधि बनाने की शक्ति देता है, भले ही वह विषय राज्य सूची(जैसे, कृषि, स्वास्थ्य) में हो। यह प्रावधान भारत को अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने में सक्षम बनाता है। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय एकता, अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता, और संघीय ढांचे में केंद्र की प्रभुता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 253 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें केंद्र को विदेशी मामलों पर विशेष शक्तियाँ थीं। भारतीय संदर्भ: भारत के स्वतंत्र होने के बाद, उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों(जैसे, संयुक्त राष्ट्र) में सक्रिय भागीदारी और संधियों को लागू करने की आवश्यकता थी। प्रासंगिकता: यह प्रावधान भारत को वैश्विक समझौतों(जैसे, पर्यावरण, व्यापार, मानवाधिकार) को लागू करने में सक्षम बनाता है।
अनुच्छेद 253 के प्रमुख तत्व
संसद की शक्ति: संसद को अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने के लिए भारत के पूरे क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने का अधिकार है। यह शक्ति सातवीं अनुसूची की किसी भी सूची(संघ, राज्य, या समवर्ती) पर लागू होती है, जिससे यह अनुच्छेद 246 पर प्रभावी होता है। उदाहरण: 2025 में, संसद ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते(2015) को लागू करने के लिए पर्यावरण नीति(राज्य सूची, प्रविष्टि 17) पर विधि बनाई।
अंतरराष्ट्रीय दायित्व: यह प्रावधान भारत को संयुक्त राष्ट्र, WTO, या अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के समझौतों को लागू करने में सक्षम बनाता है। उदाहरण: विश्व व्यापार संगठन(WTO) की संधियों के लिए व्यापार नीतियाँ।
महत्व: अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता: भारत के वैश्विक दायित्वों को पूरा करना। केंद्र की प्रभुता: राज्य सूची के विषयों पर भी संसद की शक्ति। नीतिगत एकरूपता: राष्ट्रीय स्तर पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों का कार्यान्वयन। न्यायिक समीक्षा: विधियों की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: संसद की शक्ति: अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर विधियाँ। राज्य सूची पर प्रभाव: संसद की प्रबलता। अंतरराष्ट्रीय दायित्व: वैश्विक संधियाँ। संघीय ढांचा: केंद्र की प्रभुता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1970 के दशक: संयुक्त राष्ट्र की संधियों को लागू करने के लिए मानवाधिकार विधियाँ। 2010 के दशक: पेरिस समझौते(2015) के लिए पर्यावरण नीतियाँ। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में डिजिटल व्यापार और साइबर सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों की विधियाँ।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: राज्य सूची के विषयों पर केंद्र के हस्तक्षेप पर आपत्ति। सहमति की कमी: राज्यों की सहमति के बिना विधियाँ। न्यायिक समीक्षा: अंतरराष्ट्रीय समझौतों और विधियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 246: विधायी शक्तियों का बंटवारा। अनुच्छेद 249: राष्ट्रीय हित में संसद की शक्ति। अनुच्छेद 250: आपातकाल में संसद की शक्ति। सातवीं अनुसूची: तीन सूचियाँ।
Conclusion
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