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Article 260 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 10:54:18
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 260

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 260
अनुच्छेद 260 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच संबंध) के अध्याय II(प्रशासनिक संबंध) में आता है। यह भारत के बाहर क्षेत्रों में केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्ति(Jurisdiction of the Union in relation to territories outside India) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र सरकार को भारत के बाहर किसी क्षेत्र में प्रशासनिक और विधायी कार्यों को करने की शक्ति देता है, यदि वह क्षेत्र किसी समझौते के तहत भारत के नियंत्रण में हो।
"केंद्र सरकार, भारत के बाहर किसी क्षेत्र के संबंध में, जो किसी समझौते या संधि के तहत भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में हो, ऐसी शर्तों और सीमाओं के अधीन, जैसा कि समझौते में उल्लिखित हो, विधायी, कार्यकारी, या न्यायिक कार्य कर सकती है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 260 केंद्र सरकार को भारत के बाहर किसी क्षेत्र में, जो किसी संधि या समझौते के तहत भारत के नियंत्रण में हो, विधायी, कार्यकारी, और न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करना और ऐसे क्षेत्रों में प्रशासनिक नियंत्रण सुनिश्चित करना है। यह प्रावधान भारत की संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति को सुदृढ़ करता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 260 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें ब्रिटिश भारत को विदेशी क्षेत्रों पर नियंत्रण की शक्ति थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत ने कुछ क्षेत्रों(जैसे, पुर्तगाली और फ्रांसीसी उपनिवेश) को अपने नियंत्रण में लिया, और इस तरह के प्रावधान की आवश्यकता थी। प्रासंगिकता: यह प्रावधान भारत को अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत विदेशी क्षेत्रों में प्रशासन चलाने की शक्ति देता है
अनुच्छेद 260 के प्रमुख तत्व
केंद्र सरकार की शक्ति: केंद्र सरकार भारत के बाहर किसी क्षेत्र में विधायी, कार्यकारी, और न्यायिक शक्तियों का प्रयोग कर सकती है, यदि वह क्षेत्र किसी संधि या समझौते के तहत भारत के नियंत्रण में हो। यह शक्ति समझौते की शर्तों और सीमाओं के अधीन होती है। उदाहरण: 1961 में, गोवा, दमन, और दीव(पुर्तगाली नियंत्रण से मुक्त) के प्रशासन के लिए केंद्र ने इस प्रावधान का उपयोग किया।
अंतरराष्ट्रीय समझौते: यह प्रावधान भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को लागू करने के लिए है, जैसे संयुक्त राष्ट्र या अन्य देशों के साथ समझौते। उदाहरण: 2025 में, यदि भारत किसी विदेशी क्षेत्र में UN मिशन के तहत प्रशासन संभालता है, तो अनुच्छेद 260 लागू होगा।
महत्व: अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति: भारत के वैश्विक दायित्वों को पूरा करना। प्रशासनिक नियंत्रण: विदेशी क्षेत्रों में केंद्र की प्रभुता। लचीलापन: समझौते की शर्तों के अनुसार कार्य। न्यायिक समीक्षा: केंद्र की शक्तियों की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: केंद्र की शक्ति: विधायी, कार्यकारी, न्यायिक। विदेशी क्षेत्र: समझौते के तहत नियंत्रण। अंतरराष्ट्रीय दायित्व: संधियों का अनुपालन। संप्रभुता: भारत की वैश्विक भूमिका।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1961: गोवा, दमन, और दीव के पुर्तगाली नियंत्रण से मुक्ति के बाद केंद्र ने प्रशासन संभाला। 1975: सिक्किम के भारत में विलय के दौरान प्रशासनिक शक्तियाँ। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में, यदि भारत किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत विदेशी क्षेत्र में डिजिटल प्रशासन संभालता है।
चुनौतियाँ और विवाद: संप्रभुता का सवाल: विदेशी क्षेत्रों में भारत की शक्ति पर अंतरराष्ट्रीय आपत्तियाँ। समझौते की शर्तें: शर्तों और सीमाओं की व्याख्या पर विवाद। न्यायिक समीक्षा: केंद्र की शक्तियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 253: अंतरराष्ट्रीय समझौतों के लिए विधायी शक्ति। अनुच्छेद 258: केंद्र द्वारा राज्यों को शक्ति हस्तांतरण। सातवीं अनुसूची: संघ सूची(प्रविष्टि 10: विदेशी मामले)।
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