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Article 361A of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 14:51:48
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361A

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361A
अनुच्छेद 361A भारतीय संविधान के भाग XIX (विविध) में आता है। यह संसद और राज्य विधानमंडलों की कार्यवाही के प्रकाशन को संरक्षण (Protection of publication of proceedings of Parliament and State Legislatures) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद और राज्य विधानमंडलों की कार्यवाही के सही और प्रामाणिक प्रकाशन को कानूनी कार्यवाहियों से संरक्षण प्रदान करता है।
"(1) कोई भी व्यक्ति संसद या किसी राज्य के विधानमंडल की कार्यवाही के सही और प्रामाणिक प्रकाशन के लिए किसी दीवानी या आपराधिक कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, बशर्ते वह प्रकाशन सद्भावना में और सार्वजनिक हित में हो।
(2) यह संरक्षण तब तक लागू होगा, जब तक प्रकाशन संसद या विधानमंडल के सत्र के दौरान या उसके प्राधिकार के अधीन किया गया हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 361A का उद्देश्य संसद और राज्य विधानमंडलों की कार्यवाही के सही और प्रामाणिक प्रकाशन को कानूनी कार्यवाहियों (जैसे, मानहानि के मुकदमे) से संरक्षण प्रदान करना है। यह प्रेस और मीडिया को विधायी कार्यवाहियों को जनता तक पहुँचाने की स्वतंत्रता देता है, जिससे पारदर्शिता, लोकतांत्रिक जवाबदेही, और सार्वजनिक जागरूकता बढ़ती है। इसका लक्ष्य प्रेस की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक शासन, और सार्वजनिक हित को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 361A को 44वें संवैधानिक संशोधन (1978) द्वारा जोड़ा गया। यह 1975 के आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद लागू किया गया, ताकि प्रेस को विधायी कार्यवाहियों के प्रकाशन में संरक्षण मिले। भारतीय संदर्भ: यह प्रावधान प्रेस की स्वतंत्रता को मजबूत करने और विधायी कार्यवाहियों को जनता तक पहुँचाने के लिए महत्वपूर्ण है। उदाहरण: संसद की बहसों और विधानसभाओं के सत्रों का समाचार पत्रों और मीडिया में प्रकाशन।
प्रासंगिकता (2025): डिजिटल युग में, यह प्रावधान ऑनलाइन मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर विधायी कार्यवाहियों के प्रकाशन को संरक्षण देता है, बशर्ते वे सही और प्रामाणिक हों।
अनुच्छेद 361A के प्रमुख तत्व
प्रकाशन का संरक्षण: कोई भी व्यक्ति (जैसे, समाचार पत्र, मीडिया हाउस) जो संसद या राज्य विधानमंडल की कार्यवाही का सही और प्रामाणिक प्रकाशन करता है, वह दीवानी या आपराधिक कार्यवाही (जैसे, मानहानि) के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। यह संरक्षण केवल सद्भावना और सार्वजनिक हित में किए गए प्रकाशन पर लागू होता है। उदाहरण: लोकसभा की बहस का समाचार पत्र में प्रकाशन।
शर्तें: प्रकाशन संसद या विधानमंडल के सत्र के दौरान या उनके प्राधिकार के अधीन होना चाहिए। गलत या विकृत प्रकाशन को यह संरक्षण नहीं मिलता। उदाहरण: गलत रिपोर्टिंग पर मानहानि का मुकदमा संभव।
न्यायिक समीक्षा: यदि प्रकाशन गलत, दुर्भावनापूर्ण, या संवैधानिक सीमाओं से बाहर हो, तो इसे उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। उदाहरण: सर्चलाइट केस (1959) से प्रेरणा, जिसने इस संशोधन को प्रेरित किया।
महत्व: प्रेस की स्वतंत्रता: मीडिया को विधायी कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग की स्वतंत्रता। लोकतांत्रिक पारदर्शिता: जनता को विधायी प्रक्रियाओं की जानकारी। सार्वजनिक हित: जागरूकता और जवाबदेही। संवैधानिक शासन: विधायी कार्यवाहियों का संरक्षण।
प्रमुख विशेषताएँ: संरक्षण: सही और प्रामाणिक प्रकाशन। शर्त: सद्भावना और सार्वजनिक हित। प्राधिकार: संसद/विधानमंडल के अधीन। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: शर्मा बनाम श्रीकृष्ण सिन्हा), जिसने प्रेस की स्वतंत्रता पर बहस को प्रेरित किया। 1978: 44वां संशोधन द्वारा अनुच्छेद 361A का समावेश। 2025 स्थिति: डिजिटल मीडिया में विधायी कार्यवाहियों का प्रकाशन।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 19(1)(a): वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 105: संसद के विशेषाधिकार। अनुच्छेद 194: राज्य विधानमंडलों के विशेषाधिकार।
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