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Article 372 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 15:43:30
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 372

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 372
अनुच्छेद 372 भारतीय संविधान के भाग XXI (अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध) में आता है। यह संविधान लागू होने के बाद मौजूदा कानूनों की निरंतरता और उनके अनुकूलन (Continuance in force of existing laws and their adaptation) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) से पहले मौजूद कानून तब तक लागू रहें, जब तक उन्हें संशोधित, निरस्त, या अनुकूलित न किया जाए।
(2) राष्ट्रपति, संविधान लागू होने के तीन वर्ष के भीतर, इन कानूनों को संविधान के अनुरूप अनुकूलित करने के लिए आदेश जारी कर सकता है।
(3) इस अनुच्छेद में 'कानून' में कोई भी अध्यादेश, आदेश, उप-नियम, नियम, विनियम, या अन्य कानूनी उपकरण शामिल हैं, जो संविधान लागू होने से पहले लागू थे।
उद्देश्य: अनुच्छेद 372 का उद्देश्य स्वतंत्रता के बाद कानूनी निरंतरता सुनिश्चित करना है, ताकि संविधान लागू होने पर पुराने कानूनों (जैसे, ब्रिटिश काल के कानून) का अचानक अंत न हो। यह प्रावधान संविधान के अनुरूप पुराने कानूनों को अनुकूलित करने की शक्ति देता है। इसका लक्ष्य प्रशासनिक स्थिरता, कानूनी सुगमता, और संवैधानिक ढांचे में एकीकरण सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 372 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। स्वतंत्रता के समय, भारत में ब्रिटिश काल के कई कानून (जैसे, इंडियन पीनल कोड, 1860) और रियासतों के कानून लागू थे। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने के बाद, पुराने कानूनों को तुरंत निरस्त करने से प्रशासनिक और कानूनी अराजकता हो सकती थी। उदाहरण: इंडियन पीनल कोड (1860) और सिविल प्रक्रिया संहिता (1908) की निरंतरता। प्रासंगिकता (2025): यह प्रावधान आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि कई पुराने कानून अभी भी लागू हैं, जब तक उन्हें स्पष्ट रूप से निरस्त या संशोधित न किया जाए।
अनुच्छेद 372 के प्रमुख तत्व
मौजूदा कानूनों की निरंतरता: संविधान लागू होने से पहले भारत में लागू सभी कानून (केंद्र, प्रांत, या रियासतों के) तब तक लागू रहेंगे, जब तक उन्हें संशोधित या निरस्त न किया जाए। उदाहरण: इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872।
राष्ट्रपति की अनुकूलन शक्ति: राष्ट्रपति को संविधान लागू होने के तीन वर्ष (1950-1953) के भीतर पुराने कानूनों को संविधान के अनुरूप अनुकूलित करने की शक्ति दी गई थी। इस अवधि को बाद में विस्तारित किया गया। उदाहरण: ब्रिटिश काल के कानूनों में 'क्राउन' को 'भारत सरकार' से बदलना।
कानून की परिभाषा: इस अनुच्छेद में 'कानून' में शामिल हैं: अधिनियम, अध्यादेश, नियम, विनियम, उप-नियम, आदि। उदाहरण: स्थानीय प्रशासनिक नियम।
न्यायिक समीक्षा: यदि कोई पुराना कानून संविधान के साथ असंगत है, तो उसे उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। उदाहरण: असंगत कानूनों को अनुच्छेद 13 के तहत शून्य घोषित करना।
महत्व: कानूनी निरंतरता: स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक स्थिरता। संवैधानिक अनुकूलन: पुराने कानूनों का संविधान के साथ सामंजस्य। प्रशासनिक सुगमता: त्वरित कानूनी बदलाव से बचाव। राष्ट्रीय एकीकरण: विविध कानूनी व्यवस्थाओं का एकीकरण।
प्रमुख विशेषताएँ: निरंतरता: पुराने कानून लागू। अनुकूलन: राष्ट्रपति की शक्ति। परिभाषा: व्यापक कानूनी दायरा। निगरानी: न्यायिक समीक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950: ब्रिटिश काल के कानूनों की निरंतरता। 1951-53: राष्ट्रपति द्वारा अनुकूलन आदेश। 2025 स्थिति: कई पुराने कानून (जैसे, IPC, CrPC) अभी भी लागू, हालाँकि संशोधित।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 13: असंगत कानून शून्य। अनुच्छेद 372A: अनुकूलन की अतिरिक्त शक्ति। सातवीं अनुसूची: विधायी शक्तियाँ।
Conclusion
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