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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32
jp Singh 2025-05-09 13:57:39
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32

अनुच्छेद 32: मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उपचार
भारत के संविधान का अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में व्यक्तियों को सीधे सुप्रीम कोर्ट में उपचार प्राप्त करने का अधिकार देता है। इसे संविधान की
1. सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार:
किसी भी व्यक्ति को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन करने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट इस उद्देश्य के लिए उचित आदेश, निर्देश, या रिट (Writ) जारी कर सकता है।
2. रिट की शक्ति:
दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
गैरकानूनी हिरासत से मुक्ति के लिए।
परमादेश (Mandamus)
किसी सार्वजनिक प्राधिकारी को अपने कर्तव्य का पालन करने का निर्देश।
प्रतिषेध (Prohibition)
निचली अदालतों या अर्ध-न्यायिक निकायों को उनकी अधिकारिता से बाहर कार्य करने से रोकने के लिए।
उत्प्रेषण (Certiorari)
निचली अदालतों के निर्णयों को रद्द करने या समीक्षा के लिए बुलाने के लिए।
धिकार पृच्छा (Quo Warranto)
किसी व्यक्ति के सार्वजनिक पद पर नियुक्ति की वैधता की जाँच के लिए।
सुप्रीम कोर्ट अन्य आदेश या निर्देश भी जारी कर सकता है, जो मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हों।
3. प्रतिबंध
सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 के तहत केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में हस्तक्षेप करता है। गैर-मौलिक अधिकारों (जैसे वैधानिक अधिकार) के लिए यह लागू नहीं होता।
आपातकाल के दौरान (अनुच्छेद 359 के तहत) कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है, जिससे अनुच्छेद 32 की शक्ति सीमित हो सकती है।
महत्वपूर्ण बिंदु
लागू होने का दायरा
यह अनुच्छेद नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों पर लागू होता है, क्योंकि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकता है।
संवैधानिक उपचार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकारों का संरक्षक बनाता है और इसे
महत्वपूर्ण मामले
रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950)
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 32 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की।
विशाखा बनाम राजस्थान (1997)
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 32 के तहत कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ दिशानिर्देश जारी किए।
लालू प्रसाद यादव बनाम बिहार (2003)
रिट की शक्ति का उपयोग मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए किया गया।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाता है, क्योंकि यह सीधे सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच प्रदान करता है।
यह लोकतंत्र और कानून के शासन का आधार है।
यह केवल मौलिक अधिकारों तक सीमित है और सामान्य कानूनी विवादों में लागू नहीं होता।
सुप्रीम कोर्ट तुच्छ या दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं को खारिज कर सकता है।
Conclusion
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