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Rebellion of the ruler of Vijayanagara
jp Singh 2025-05-28 12:48:31
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विजयनगर के शासक का विद्रोह (1336-1646)

विजयनगर के शासक का विद्रोह (1336-1646)
विजयनगर साम्राज्य के संदर्भ में, कोई एकल "विजयनगर के शासक का विद्रोह" नामक विशिष्ट विद्रोह ऐतिहासिक रूप से स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है। विजयनगर साम्राज्य (1336-1646) दक्षिण भारत का एक शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य था, जिसके शासकों ने मुख्य रूप से बाहरी आक्रमणों (जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में दक्कन सल्तनतों) का सामना किया। हालांकि, विजयनगर के शासकों द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष विद्रोह नहीं हुआ, क्योंकि साम्राज्य का पतन 17वीं सदी में ही हो गया था, जब ब्रिटिश शासन भारत में स्थापित नहीं हुआ था।
विजयनगर के शासकों का दक्कन सल्तनतों के खिलाफ प्रतिरोध: विजयनगर के शासकों ने कई बार दक्कन सल्तनतों (विशेषकर बीजापुर, गोलकुंडा, और अहमदनगर) के खिलाफ युद्ध लड़े, जिन्हें विद्रोह के रूप में नहीं, बल्कि साम्राज्य की रक्षा के लिए युद्धों के रूप में देखा जाता है। सबसे प्रसिद्ध उदाहरण तालीकोटा का युद्ध (1565) है, जिसमें विजयनगर की हार हुई। विजयनगर के पतन के बाद स्थानीय प्रतिरोध: विजयनगर के पतन (1565 के बाद) के बाद, साम्राज्य के कुछ नायकों (स्थानीय सामंतों) और छोटे शासकों ने दक्कन सल्तनतों और बाद में मुगलों के खिलाफ विद्रोह किए। इन्हें विजयनगर के शासकों के विद्रोह के रूप में नहीं, बल्कि स्थानीय प्रतिरोध के रूप में देखा जाता है।
संभावित भ्रम: यदि आप विजयनगर के किसी विशिष्ट शासक या क्षेत्र के विद्रोह की बात कर रहे हैं, तो संभवतः आप दक्षिण भारत के किसी अन्य विद्रोह (जैसे पालियागर विद्रोह या मैसूर के शासकों के विद्रोह) का उल्लेख कर रहे हों। उदाहरण के लिए: पालियागर विद्रोह (17वीं-18वीं सदी): विजयनगर के पतन के बाद, दक्षिण भारत के पालियागरों (स्थानीय जागीरदारों) ने ब्रिटिश और अन्य शासकों के खिलाफ विद्रोह किए। ये विजयनगर के अवशेषों से जुड़े थे, लेकिन इन्हें विजयनगर के शासकों का विद्रोह नहीं कहा जा सकता। मैसूर विद्रोह: विजयनगर के क्षेत्रीय प्रभाव के अंत के बाद, मैसूर के शासकों (जैसे टीपू सुल्तान) ने ब्रिटिशों के खिलाफ विद्रोह किए। यह आपके प्रश्न से संबंधित हो सकता है।
संक्षिप्त जानकारी (यदि तालीकोटा युद्ध या विजयनगर के पतन के बाद के प्रतिरोध को संदर्भित माना जाए): तालीकोटा का युद्ध (1565): पृष्ठभूमि: विजयनगर के शासक रामराय (अलिय राम राय) ने दक्कन सल्तनतों (बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर, बीदर) के खिलाफ युद्ध लड़ा। उनकी आक्रामक नीतियों और सल्तनतों के बीच गठजोड़ ने युद्ध को अपरिहार्य बना दिया। नेतृत्व: रामराय ने विजयनगर की सेना का नेतृत्व किया, लेकिन सल्तनतों की संयुक्त सेना ने उन्हें पराजित किया। परिणाम: विजयनगर की राजधानी हम्पी को नष्ट कर दिया गया, और साम्राज्य कमजोर हो गया। यह विद्रोह नहीं, बल्कि एक युद्ध था।
महत्व: इस हार ने विजयनगर की शक्ति को समाप्त कर दिया, जिसके बाद स्थानीय नायक और पालियागर उभरे। पालियागर विद्रोह (17वीं-18वीं सदी): विजयनगर के पतन के बाद, इसके पूर्व क्षेत्रों में पालियागर (स्थानीय जागीरदार) जैसे मदुरै, तंजावुर और चंद्रगिरि के नायकों ने मुगलों, मराठों और बाद में ब्रिटिशों के खिलाफ प्रतिरोध किया। ये विद्रोह स्थानीय स्तर पर थे और विजयनगर के शासकों के प्रत्यक्ष विद्रोह के बजाय उनके सामंतों द्वारा किए गए थे।
मैसूर के शासकों का विद्रोह (18वीं सदी): यदि आपका प्रश्न मैसूर के शासकों (जो कभी विजयनगर के अधीन थे) के विद्रोह को संदर्भित करता है, तो हैदर अली और टीपू सुल्तान के ब्रिटिशों के खिलाफ विद्रोह (1767-1799) प्रासंगिक हो सकते हैं। ये एंग्लो-मैसूर युद्ध के रूप में जाने जाते हैं।
प्रमुख युद्ध: प्रथम एंग्लो-मैसूर युद्ध (1767-1769): हैदर अली ने ब्रिटिशों को हराया। चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1799): टीपू सुल्तान की हार और मृत्यु, जिसके बाद मैसूर ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया। महत्व: टीपू सुल्तान को ब्रिटिशों के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध का प्रतीक माना जाता है।
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